राह आसान हो गई होगी
जान पहचान हो गई होगी
फिर पलट कर निगाह नहीं आई
तुझ पे क़ुरबाँ हो गई होगी
तेरी ज़ुल्फो को छेडती थी सबा
खुद परेशाँ हो गई होगी
उन से भी छीन लोगे याद अपनी
जिन का ईमान हो गई होगी
मरने वालो पे ‘सैफ‘ हैरत क्यों
मौत आसान हो गई होगी
– सैफुद्दीन सैफ
बहुत आभार सैफुद्दीन सैफ साः की रचना यहाँ प्रस्तुत करने के लिये.
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सैफ साहब की शानदार रचना प्रस्तुत करने के लिये साधुवाद.
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