हो गयी है शाम, तेरी याद आ रही है |
हर तरफ है धुन्ध, हर आस जा रही है ||
खो गया है अब तो मेरा खुद का वजूद भी,
ना जाने किस लिहाज़ से ये सांस आ रही है||
तेरे दिए गम के साथ ही जिए जा रहा हूँ,
कैसे कर लूँ यकीन तेरी तरह छोड़ के ना जाएगा ये|
किसी और से ना उम्मीद ना गिला है कोई अब,
तेरे गम के दायरे मे ही ये उम्र जा रही है ||
– गौरव संगतानी