रातों को चुपके से कोई साया आता है,
हवा का हर झोंका तेरी याद लाता है |
कब तक यूँ ही तपड़ता रहूँगा मैं,
क्यों हर बार मेरा मुक़द्दर मेरे दर से लौट जाता है ||
गौरव संगतानी
रातों को चुपके से कोई साया आता है,
हवा का हर झोंका तेरी याद लाता है |
कब तक यूँ ही तपड़ता रहूँगा मैं,
क्यों हर बार मेरा मुक़द्दर मेरे दर से लौट जाता है ||
गौरव संगतानी