समझे नहीं जो खामोशी मेरी,
मेरे लब्जों को क्या समझेंगे |
बचते रहे उम्र भर साये से मेरे,
मेरे जख्मों को क्या समझेंगे |
भूल जाना यूँ तो नहीं है, रवायत मोहब्बत की |
समझे नहीं जो हालात मेरे,
इन रस्मों को क्या समझेंगे |
– गौरव संगतानी
समझे नहीं जो खामोशी मेरी,
मेरे लब्जों को क्या समझेंगे |
बचते रहे उम्र भर साये से मेरे,
मेरे जख्मों को क्या समझेंगे |
भूल जाना यूँ तो नहीं है, रवायत मोहब्बत की |
समझे नहीं जो हालात मेरे,
इन रस्मों को क्या समझेंगे |
– गौरव संगतानी
गहरी बात कह रहे हैं.
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क्या पंक्तिया लिखी है. गहरे अर्थ समेटे हुए है. लेकिन ये क्या की शुरू हुए नही और ख़त्म.
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बहुत बढिया!
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बहुत खूबसूरती से कही है बात..!
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बहुत खूबसूरत ..
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bahut hi acchi bat kahi hai
sundar vichar
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बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति………
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