कभी यूँ ही लिखा था कुछ तेरी याद मे, तेरी याद आयी तो फिर से गुनगुना दिया आज….
“दर्द की इंतहाँ हो गयी है यारों |
सुबह चले थे अब शाम हो गयी है यारों |
थक गयें हैं लेकिन कोई सहारा नहीं मिलता |
समंदर में मौजों को किनारा नहीं मिलता |
टूटा तो बहुत कुछ इस आसमां की झोली से |
इन पत्थरों में लेकिन कोई सितारा नहीं मिलता…”
बस यूँ ही….
– गौरव संगतानी
टूटा तो बहुत कुछ इस आसमां की झोली से |
इन पत्थरों में लेकिन कोई सितारा नहीं मिलता..
बहुत सुन्दर रचना हैं,
बधाई स्वीकार करें ..
सादर
हेम
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