जीवन हर पल कुछ सिखाना चाहता है,
एक नयी सीख, एक नया सबक…
पर ना जाने क्यूं ये दिल कुछ सीखना ही नही चाहता, कुछ समझना ही नहीं चाहता…..
या मानूं तो, जो दिख रहा है, उसे स्वीकरना नही चाहता…..
पर हमारे स्वीकारने या ठुकराने से सच बदल तो नही जाता…
ये पक्क्तियाँ जो कभी यूँ ही लिखी थी… आज सच होती दिखती हैं….
दिल मानता नही इसे आदत है चोट खाने की….
कितनी दफ़ा कोशिश की हमने इसे समझाने की…..
बहुत कुछ सीखा है इसने तुमसे पर इक बात सीख ना पाया……
इसे आदत नहीं यूँ ही भूल जाने की…..
– गौरव संगतानी
अच्छी कवितायें हैं। लिखते चलिये।
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