समय यूँही चला जाता है और हम देखते रह जाते हैं,
वैसे ही जैसे मुट्ठी मे भरी रेत………
कितनी ही कोशिश करे कोई, कितना ही कस के पकड़े…. धीरे धीरे हाथ ख़ाली रह जाता है…..
इसी रेत की तरह है वक़्त…………..
लम्हों को कितना ही रोकना चाहो, यादों को कितना ही सहेजना चाहो….
कुछ हाथ नहीं आता……..
शायद तभी लोग केहते हैं…..
जब अच्छा वक़्त नही रहा तो बुरा भी नहीं रहेगा….
वक़्त कैसा भी रहा हो यादें छोड़ जाता है…………………..
– गौरव संगतानी