आख़िर क्यूँ..
कितनी दफा हम पूछते हैं न….. आख़िर क्यूँ..??? कुछ बातों का कोई कारण नही होता कोई अर्थ नहीं होता कोई तर्क नहीं होता आप स्वीकारें न स्वीकारें…. कोई फर्क नही होता….!!! कुछ...
कितनी दफा हम पूछते हैं न….. आख़िर क्यूँ..??? कुछ बातों का कोई कारण नही होता कोई अर्थ नहीं होता कोई तर्क नहीं होता आप स्वीकारें न स्वीकारें…. कोई फर्क नही होता….!!! कुछ...
बदनाम मेरे प्यार का अफ़साना हुआ है दीवाने भी कहते हैं की दीवाना हुआ है रिश्ता था तभी तो किसी बेदर्द ने तोड़ा अपना था तभी तो कोई बेगाना हुआ है बादल की तरह आ के बरस जाये इक दिन दिल आप के होते हुए विराना हुआ है बजते हैं ख़यालों में तेरी याद के घुँगरू कुछ दिन से मेरा घर भी परीखाना हुआ है मौसम ने बनाया है निगाहों को शराबी जिस फूल को देखूं वही पैमाना हुआ है – अज्ञात
आओ आज नाम बदल लें…! ले लो इस नाम से जुड़ी सब दौलत और शौहरत, मुझे बेनामी का सुकून लौटा दो…. अक्सर तुम्हे देखा है नुक्कड़ पे बच्चो के साथ फुटबाल खेलते, मैं भी सनडे को साहब के साथ गोल्फ खेलने जाता हूँ….. बोलो तो खेल बदल लें… आओ आज नाम बदल लें…! ले लो इस नाम से जुड़े सब ओहदे और तोहफे, मुझे बेनामी का प्यार लौटा दो…. कल तुम्हे देखा था दीनू के घर का छप्पड़ डालते, मैं भी कंप्यूटर पे इमारतों के ख़ाके खींचा करता हूँ…. बोलो तो ये काम बदल लें…. आओ आज नाम बदल लें…! ले लो इस नाम से जुड़े सब शिकवे और शिकायतें, मुझे बेनामी का भोलापन लौटा दो….. रोज शाम तुम्हे देखता हूँ मॅरी के साथ मरीन ड्राइव पे, मैं भी रीना, टीना, गीता, रानी और आरती के साथ फ्राइडे नाइट पब मे जाता हूँ…. बोलो तो ये प्यार बदल लें…. आओ आज नाम बदल लें…! ले लो इस नाम से जुड़े सब कसमे और वादे, मुझे बेनामी का सीधापन लौटा दो….. अक्सर तुम्हे पाता हूँ पान वाले, नन्हे नंदू और गंगा काकी से बतियाते, मैं भी घंटो कान्फरेन्स कॉल पे बातें करता हूँ…. बोलो तो ये पहचान बदल लें… आओ आज नाम बदल लें…! – गौरव संगतानी
क्या लिखूं…. पैगाम लिखूं… तुझे जज़्बात लिखूं… या अपने ये हालात लिखूं…. क्या लिखूं…. रातें लिखूं… वो बातें लिखूं… या ठहरी हुई मुलाक़ातें लिखूं… क्या लिखूं…. जीत लिखूं… इसे हार लिखूं…. या प्यार का व्यापार लिखूं….. क्या लिखूं…. तुझपे लिखूं… खुद को लिखूं…. या बेहतर है कुछ ना लिखूं….. क्या लिखूं…. – गौरव संगतानी
गीले काग़ज़ क़ी तरह है ज़िंदगी अपनी,कोई जलाता भी नहीं और कोई बुझाता भी नहीं |इस कदर अकेले हो गये हैं आज कल,कोई सताता भी नहीं और कोई मनाता भी नहीं ||___________________________________आँखो मे महफूज़...
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं, तुम कह देना कोई खास नही……. एक दोस्त है कच्चा पक्का सा, एक झूठ है आधा सच्चा सा….. जज़्बाद को ढकके एक परदा बस, एक बहाना अच्छा...
कुछ शेर धुंधले से…. कहीं सुने थे कभी…. जिन्होने भी लिखे हैं उन्हे सलाम… १. तेरी याद मे जल रहा हूँ मैं, जहाँ तक रोशनी हो… चले आओ.. चले आओ…..! _____________________________________________ २. किस ज़ुबान से करें शिकवा हम उनके ना आने का, ये एहसान क्या कम है कि हमारे दिल मे रहते हैं…! _____________________________________________ ३. उनकी मसरूफ़ियत ने बाँधे रखा होगा उन्हे, वरना क्या मज़ाल… वो हमे याद ना करें…! ____________________________________________ ४. एक ज़रा सी बात पे बरसों के याराने गये… हाँ मगर अच्छा हुआ कुछ लोग पहचाने गये…! ___________________________________________ ५. तेरी बेवफ़ाई का शिकवा नही मुझे… गिला तो तब हो जब तूने किसी से भी निभाई हो…! ___________________________________________ ६. ए खुदा अगर ये सच है कि दिलों क़ी मोहब्बतो मे तू नज़र आता है….. तो क्यों टूटते हैं दिल…. और खुद तेरा ही वज़ूद बिखर जाता है…..! …. शेष फिर कभी…..